Money bill या धन विधेयक क्या होता है?
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Money Bill |
Money Bill (धन विधेयक)-
भारतीय संविधान में money bill से संबंधित विस्तृत प्रावधान है money bill को धन विधेयक या वित्तीय विधेयक नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो, कोई अन्य सामान्य विधेयक संसद के दोनों सदनों में पेश किया जा सकता है, लेकिन money bill (धन विधेयक) सिर्फ लोकसभा में ही पेश किया जाता है लोकसभा जब money bill (धन विधेयक) को पारित कर देती है तो यह राज्यसभा के पास जाता है राज्यसभा 14 दिन के भीतर मनी बिल (धन विधेयक) को अपनी सिफारिशों के साथ वापस लोकसभा के पास भेज सकती है। लोकसभा पर यह निर्भर करता है कि वह राज्यसभा की सिफारिशों को स्वीकार करती है या खारिज करती है।
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संविधान के अनुच्छेद 109 में money bill (धन विधेयक) के पारित होने से संबंधित प्रक्रिया का प्रावधान है। संविधान के अनुच्छेद 110 के अनुसार किसी विधेयक को मनी बिल (धन विधेयक) तभी माना जाएगा जब उसमें कोई टैक्स लगाने हटाने कम करने या नियमन करने संबंधित प्रावधान हों।
इसके अलावा सरकार द्वारा धनराशि उधार लेने या गारंटी देने या सरकार के वित्तीय दायित्व से संबंधित किसी विधेयक में संशोधन भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) और आपात निधि (Contingency Fund) से धनराशि निकालने से संबंधित प्रावधानों वाले दिल को भी मनी बिल (धन विधेयक) माना जाता है।
अगर सदन की कार्यवाही के दौरान यह प्रश्न उठाया जाता है कि पेश किया जाने वाला विधेयक मनी बिल है या नहीं तो उस स्थिति में लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है। इस तरह जब कोई मनी बिल लोकसभा में पारित हो कर राज्यसभा के पास भेजा जाता है तो संविधान के अनुच्छेद 111 के तहत राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाता है तो इसके साथ स्पीकर का यह प्रमाण पत्र भी होता है कि उक्त विधेयक मनी बिल (धन विधेयक) है।
फाइनेंस बिल भी money bill होता है। संविधान के अनुच्छेद 110 (1) (A) के तहत सरकार जब कोई नया टैक्स लगाने, पुराना टैक्स खत्म करने या मौजूदा टैक्स में कोई फेरबदल करने का प्रावधान बजट में कर दी है तो यह फाइनेंसियल बिल के रूप में होता है क्योंकि फाइनेंसियल बिल एक मनी बिल (धन विधेयक) होता है इसलिए सर का संविधान के अनुच्छेद 117 (1) के तहत राष्ट्रपति की सिफारिश के साथ उसे लोकसभा में ही पेश करती है।फाइनेंस बिल (वित्त विधेयक) पेश होते समय इसका विरोध नहीं किया जा सकता। खास बात यह है कि जब विधेयक पेश किए जाने के 75 दिन के भीतर संसद के दोनों सदनों से पारित हो जाना चाहिए।
फाइनेंस बिल (वित्त विधेयक) के कस्टम और सेंट्रल एक्साइज से संबंधित बदलाव इसके लोकसभा में पेश होने के तत्काल बाद ही लागू हो जाते हैं वैसे तो किसी एक वित्त वर्ष में 1 से अधिक फाइनेंस बिल (वित्त विधेयक) पेश करने पर कोई पाबंदी नहीं है लेकिन सरकार अगर दूसरी बार फाइनेंस बिल (वित्त विधेयक) पेश करती है तो इसके साथ अनुदान की मांग और उससे संबंधित अप्रोप्रिएशन बिल (विनियोग विधेयक) भी पेश किया जाना चाहिए।
Appropriation bill (विनियोग विधेयक) भी फाइनेंस बिल (वित्त विधेयक) होता है संविधान के अनुच्छेद 113 के तहत सदन जब अनुदान की मांगे पारित कर देता है तब सरकार संचित निधि से धन राशि निकालने के लिए Appropriation bill (विनियोग विधेयक) पेश करती है यह बिल के पारित हुए बगैर संचित निधि से धनराशि नहीं निकाली जा सकती। अप्रोप्रिएशन बिल (विनियोग विधेयक) में संशोधन नहीं किया जा सकता।
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